भारत सरकार ने तीनों सशस्त्र बलों की युद्धक क्षमता में विस्तार हेतु एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। रक्षा अधिग्रहण परिषद ने 40,000 करोड़ रुपये की आपातकालीन खरीद को मंजूरी प्रदान की है, जिससे अत्यावश्यक उपकरणों की समयबद्ध अधिप्राप्ति सुनिश्चित होगी।
ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में, भारत ने स्पष्ट किया है कि वर्तमान कार्यवाही में केवल “रणनीतिक विराम” लगाया गया है। यदि पाकिस्तान सीमा-पार आतंकवाद को प्रोत्साहित करने की नीति में परिवर्तन नहीं करता, तो भारत आवश्यकतानुसार प्रतिक्रिया देने के लिए तत्पर है। इसी कारण सरकार ने सशस्त्र बलों को विशेष आपातकालीन खरीद अधिकार प्रदान किए हैं।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में रक्षा अधिग्रहण परिषद ने हाल ही में ईपी-6 (आपातकालीन खरीद-6) को स्वीकृति दी है। ध्यातव्य है कि पूर्व में प्रदान किए गए चार आपातकालीन खरीद अधिकार पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ सीमा विवाद के दौरान जारी किए गए थे, जबकि पांचवां आतंकवाद-विरोधी अभियानों हेतु था।
ईपी-6 के अंतर्गत, सशस्त्र बल 300 करोड़ रुपये तक के प्रत्येक अनुबंध को त्वरित गति से प्रक्रियाबद्ध कर सकते हैं, जिससे सामान्य विस्तृत खरीद प्रक्रिया का परिहार हो सकेगा। इन अनुबंधों को 40 दिवस के भीतर अंतिम रूप दिया जाएगा तथा एक वर्ष के अंदर सामग्री की प्राप्ति पूर्ण की जाएगी। तीनों सेनाओं के उप-प्रमुखों द्वारा इन शक्तियों का उपयोग किया जाएगा।
प्राथमिकता वाले उपकरणों में निगरानी ड्रोन, कामिकेज़ ड्रोन, लोइटरिंग म्यूनिशन एवं विविध प्रकार की मिसाइलें तथा गोला-बारूद सम्मिलित हैं। ब्रह्मोस और स्कैल्प क्रूज मिसाइलों का पहले ही पाकिस्तानी लक्ष्यों के विरुद्ध प्रयोग किया गया है। ऑपरेशन में उपयोग की गई रैम्पेज मिसाइल भी इसी प्रकार के आपातकालीन प्रावधानों के अंतर्गत अधिगृहीत की गई थी।
आपातकालीन खरीद शक्तियां यह सुनिश्चित करती हैं कि आवश्यक हथियार और उपकरण निर्धारित समयावधि में प्राप्त हो जाएं, जिससे तत्काल परिचालन आवश्यकताओं की पूर्ति संभव हो सके। सूत्रों के अनुसार, सेनाएं अतिरिक्त हेरॉन मार्क 2 ड्रोन प्राप्त करने की योजना बना रही हैं, जिनका उपयोग ऑपरेशन सिंदूर के दौरान निगरानी एवं हमलों में किया गया था।