अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण अटल है; अनुसूचित जातियों को इस्लाम और ईसाई में शामिल करने से आरक्षण पर संवैधानिक भावना कमजोर होगी: विहिप 

 विश्व संवाद केंद्र (वीएसके), गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय (जीबीयू) और ‘हिंदू विश्व’ पाक्षिक पत्रिका ने संयुक्त रूप से चार और पांच मार्च, 2023 को ‘कन्वर्जन और आरक्षण (न्यायमूर्ति केजी बालकृष्णन आयोग के संदर्भ में)’ पर कॉन्क्लेव का आयोजन किया। यह  आयोजन गौतम बुद्ध यूनिवर्सिटी कैंपस, ग्रेटर नोएडा में किया गया।
वीएसके और जीबीयू ने न्यायमूर्ति के. जी. बालकृष्णन आयोग के संदर्भ की शर्तों से जुड़े 17 विषयों का चयन किया था। आयोजकों ने इन विषयों पर पेपर मंगवाने का आह्वान किया, जिस पर देश भर से 60 कानूनी और शैक्षणिक विशेषज्ञों ने अपने लेख भेजे।
योजना आयोग के पूर्व सदस्य और राज्यसभा के सांसद श्री नरेंद्र जाधव उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि थे। वरिष्ठ अधिवक्ता श्री आलोक कुमार और भारत के पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री प्रो. संजय पासवान प्रमुख वक्ता थे।
कॉन्क्लेव में 150 से अधिक व्यक्तियों ने भाग लिया, जिनमें पूर्व न्यायाधीश, सेवारत और पूर्व कुलपति, डीन, प्रोफेसर, पत्रकार, अधिवक्ता, स्तंभ लेखक और शिक्षाविद शामिल थे। समापन सत्र की अध्यक्षता डीआईसीसीआई के पद्म श्री मिलिंद कांबले ने की। विहिप के संयुक्त महासचिव श्री सुरेंद्र जैन और श्री न्यायमूर्ति शिव शंकर राव बुलुसु (सेवानिवृत्त) समापन सत्र के मुख्य वक्ता थे।
कॉन्क्लेव ने सर्वसम्मति से दोहराया कि अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण जारी रहेगा। अनुसूची में जाति के चयन का आधार सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ापन है। 1931 की जनगणना के लिए तत्कालीन जनगणना आयुक्त डॉ जे. एच. हटन द्वारा तैयार की गई प्रश्नावली ने सामाजिक पिछड़ेपन के निर्धारण का आधार बनाया था। इसमें निम्नलिखित प्रश्न शामिल था:
-वे जातियाँ जिनके वारे में उच्च जाति के व्यक्ति यह मानते थे कि उनके छूने या पास आने से वे दूषित हो जाएंगे?
  इसके आधार पर राज्य ने हिंदू समाज में अछूत मानी जाने वाली जातियों की पहचान की। यही वर्गीकरण बाद में अस्पृश्यता को खत्म करने के लिए भारत के संविधान में अनुच्छेद 17 को पेश करने का आधार बना। फिर भी, अनुसूचित जातियों के खिलाफ सामाजिक भेदभाव का अभिशाप विभिन्न रूपों और स्तरों में जारी है।
इसलिए, आरक्षण जारी रहना चाहिए और अतीत में अछूत मानी जाने वाली जातियों तक ही सीमित होना चाहिए। इब्राहीमी संप्रदाय, यानी इस्लाम और ईसाई घोषणा करते हैं कि उनमें कोई जाति व्यवस्था नहीं है, इसलिए, अस्पृश्यता का कोई अभ्यास नहीं है। इस प्रकार एक अनुसूचित जाति का व्यक्ति जो इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित हो जाता है, सामाजिक कलंक को पीछे छोड़ देता है और उसे अनुसूचित जाति श्रेणी में आरक्षण नहीं दिया जा सकता है।
  वैसे भी, मुसलमानों और ईसाइयों के बीच ओबीसी विभिन्न राज्यों के संबंधित कोटे में आरक्षण का लाभ उठाते हैं। दूसरे गरीब मुस्लिम और ईसाई ईडब्ल्यूएस श्रेणी के तहत आरक्षण के हकदार हैं। वे अल्पसंख्यकों के विकास के लिए विभिन्न योजनाओं का लाभ भी उठाते हैं। उनके संस्थान भारत के संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत संरक्षित हैं। अल्पसंख्यकों को मुफ्त राशन, आवास, शौचालय, गैस, बिजली, नल का पानी आदि कल्याणकारी योजनाओं से भी लाभ मिला है।
इसलिए अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण अटल है। किसी दूसरी जाति या नस्ल को आरक्षण सूची में शामिल करने से आरक्षण प्रावधानों के पीछे संवैधानिक भावना कमजोर होगी। वीएसके, आयोग के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए एक ज्ञापन तैयार करेगा, व्यक्तिगत सुनवाई के लिए अनुरोध करेगा और एक तार्किक और न्यायपूर्ण निष्कर्ष के लिए आयोग के समक्ष तथ्यों को रखने के लिए हर संभव कदम उठाएगा। वीएसके और ‘हिंदू विश्व’ भी इस तरह के कॉन्क्लेव का आयोजन देश के विभिन्न हिस्सों में करेंगे, ताकि अधिक इनपुट और समर्थन प्राप्त हो सके।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here