नीति आयोग के सीईओ बी.वी.आर. सुब्रमण्यम बोले — भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता महीने के अंत तक सफल हो सकती है

भारत और अमेरिका के बीच चल रही व्यापार वार्ता जल्द ही सकारात्मक परिणाम दे सकती है। नीति आयोग के सीईओ बी.वी.आर. सुब्रमण्यम ने शुक्रवार को मुंबई में आयोजित एक मीडिया कार्यक्रम में कहा कि बातचीत सही दिशा में आगे बढ़ रही है और उम्मीद है कि महीने के अंत तक इस मोर्चे पर सफलता मिल जाएगी।

उन्होंने कहा कि भारत को 8–9 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर बनाए रखने के लिए अपनी निवेश दर (Investment Rate) को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 35-36 प्रतिशत तक बढ़ाना होगा। वर्तमान में यह दर 30-31 प्रतिशत के आसपास है। सुब्रमण्यम ने कहा, “अगर भारत को विकसित राष्ट्र बनना है, तो उसे निवेश, उत्पादकता और कौशल में समान रूप से सुधार लाना होगा।”

नीति आयोग प्रमुख ने बताया कि नेशनल मैन्युफैक्चरिंग मिशन नवंबर तक शुरू हो जाएगा। इसके तहत 15 प्रमुख सेक्टरों में वैश्विक स्तर के प्रतिस्पर्धी मैन्युफैक्चरिंग हब तैयार किए जाएंगे। इसके लिए देशभर में 75 स्थानों पर सेक्टोरल क्लस्टर विकसित करने की योजना है। उन्होंने इसे पिछले बजट की “सबसे बड़ी और दूरदर्शी घोषणा” बताया।

सुब्रमण्यम ने कहा कि भारत की तेज आर्थिक वृद्धि ने उसे वैश्विक अर्थव्यवस्था में सबसे उज्ज्वल स्थान बना दिया है। उन्होंने कहा, “भारत के पास आकार, बाजार की गहराई, नवाचार क्षमता और टैलेंट पूल जैसी खूबियां हैं — यही कारण है कि अन्य देश भारत के साथ साझेदारी करने के लिए मजबूर होंगे।”

उन्होंने आगे कहा कि भारत को “विश्वस्तरीय, खुली अर्थव्यवस्था” बनाए रखना चाहिए, भले ही अन्य देश टैरिफ या व्यापारिक प्रतिबंध बढ़ाएं। उनका मानना है कि निरंतरता, नीतिगत स्थिरता और कौशल विकास पर ध्यान ही भारत को “विकसित राष्ट्र” के लक्ष्य तक पहुंचाएगा।

विदेशी निवेशकों के बढ़ते रुझान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि भारत की लागत प्रतिस्पर्धात्मकता और स्थिर बाजार माहौल विदेशी कंपनियों को आकर्षित कर रहा है। हालांकि उन्होंने आगाह किया कि व्यापार में आसानी लाने के लिए नौकरशाही बाधाओं को कम करना और “न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन” के सिद्धांत को लागू करना जरूरी है।

मानव पूंजी पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, “अगर मेरे पास निवेश के लिए सिर्फ एक रुपया होता, तो मैं उसे शिक्षा और कौशल विकास में लगाता।” उन्होंने तुलना करते हुए बताया कि औसतन भारतीय छात्र 6 से 7 साल की स्कूली शिक्षा लेते हैं, जबकि दक्षिण कोरिया में यह अवधि 13 से 14 सालहै — यही अंतर भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती और अवसर दोनों है।

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