भारतीय महिला हॉकी टीम की पूर्व कप्तान प्रीतम सिवाच ने अपने असाधारण कौशल और नेतृत्व क्षमता द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वह भारत की प्रथम महिला हॉकी कोच हैं जिन्हें प्रतिष्ठित ‘द्रोणाचार्य अवॉर्ड’ से सम्मानित किया गया है।
प्रीतम का जन्म 2 अक्टूबर 1974 को गुरुग्राम के झाड़सा गाँव में हुआ था। उन्होंने मात्र 13 वर्ष की आयु में, सामाजिक चुनौतियों के बावजूद हॉकी खेलना आरंभ किया। दसवीं कक्षा के दौरान, परिवार द्वारा विवाह का प्रस्ताव रखे जाने पर प्रीतम ने दृढ़ता से अपने खेल करियर को प्राथमिकता दी और दो वर्ष का समय प्राप्त किया।
1990 में, प्रीतम ने अपनी पहली राष्ट्रीय प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का पुरस्कार प्राप्त किया। इसके पश्चात 1992 में जूनियर एशिया कप में उन्होंने अपने प्रथम अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन में ‘बेस्ट प्लेयर’ का सम्मान अर्जित किया। उसी वर्ष रेलवे में नियुक्ति प्राप्त करने से उनका आत्मविश्वास और दृढ़ हुआ।
विवाह के पश्चात भी, पति और मायके के समर्थन से प्रीतम का खेल करियर निरंतर प्रगति करता रहा। 1998 में एशियाड में उन्होंने कप्तान के रूप में भारत को रजत पदक दिलाया। 2002 में कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक प्राप्ति में प्रीतम की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही।
2002 में प्रीतम ने कोचिंग आरंभ की और 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीय महिला हॉकी टीम की प्रशिक्षक नियुक्त हुईं। वर्तमान में, वह सोनीपत में ‘द प्रीतम सिवाच एकेडमी’ का संचालन करती हैं, जहां से प्रशिक्षित कई खिलाड़ी ओलंपिक स्तर तक पहुंचे हैं।
हॉकी के क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान के लिए, प्रीतम को 1998 में ‘अर्जुन अवॉर्ड’ तथा 2021 में ‘द्रोणाचार्य पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है। प्रीतम सिवाच का जीवन भारतीय खेल जगत में महिला सशक्तिकरण और प्रेरणादायक नेतृत्व का एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है।
उनकी यात्रा ग्रामीण परिवेश से अंतरराष्ट्रीय पटल तक पहुंचने का प्रमाण है कि कठिन परिस्थितियों और सामाजिक बाधाओं के बावजूद, दृढ़ संकल्प और समर्पण से सफलता अवश्य प्राप्त की जा सकती है।