म्यांमार, भारत का पड़ोसी देश, पिछले दो दिनों से भीषण भूकंप के झटकों का सामना कर रहा है। शुक्रवार को 7.7 तीव्रता का एक शक्तिशाली भूकंप आया, जिसने व्यापक तबाही मचाई। इसके बाद शनिवार को भी भूकंप के झटके महसूस किए गए, इस बार की तीव्रता 5.1 थी। इस प्राकृतिक आपदा के परिणामस्वरूप म्यांमार में 1,644 लोगों की मृत्यु हो गई, जबकि थाईलैंड में 10 लोग हादसे का शिकार हुए और 100 से अधिक लोग मलबे में फंस गए। इस आपदा से लगभग तीन हजार लोग घायल हुए हैं।
देश में चल रहे गृहयुद्ध के कारण म्यांमार की आपातकालीन सेवाएं पहले से ही कमजोर हैं, जिससे राहत कार्यों में और समस्या उत्पन्न हो रही है। ऐसे में, म्यांमार की सैन्य सरकार ने अंतरराष्ट्रीय सहायता की आवश्यकता जताई है, जो कि अत्यंत दुर्लभ स्थिति है।
भारत ने पहले ही इस आपदा में मदद का ऐहसास कराया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने म्यांमार और थाईलैंड में आए भूकंप को लेकर चिंता जताते हुए राहत कार्यों में सहायता की पेशकश की। भारत ने 15 टन राहत सामग्री, जिसमें तंबू, कंबल, पानी के प्यूरीफायर और आवश्यक दवाइयां शामिल हैं, भेजी हैं। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय आपदा राहत बल (NDRF) के 80 कर्मियों को म्यांमार भेजा जा रहा है।
विदेश मंत्रालय ने बताया कि एक फील्ड अस्पताल को भी एयरलिफ्ट किया जाएगा। इस सहयोग के तहत, पीएम मोदी ने म्यांमार के वरिष्ठ जनरल मिन आंग ह्लाइंग से बातचीत की, और भारत की एकजुटता प्रकट की। भारत के साथ-साथ यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी सहायता का आश्वासन दिया है। यह स्थिति दर्शाती है कि जब प्राकृतिक आपदाएं आती हैं, तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय एकजुट होकर मदद के लिए तैयार हो जाता है।