प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी समारोह में सहभागिता की, जहां उन्होंने संघ के 100 वर्षों के योगदान को राष्ट्र निर्माण की महत्वपूर्ण यात्रा के रूप में प्रतिपादित किया।
अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आरएसएस अपने गठन से ही राष्ट्र निर्माण के विशिष्ट उद्देश्य से कार्यरत है। उन्होंने उल्लेख किया कि संघ ने व्यक्ति निर्माण के माध्यम से राष्ट्र निर्माण का मार्ग अपनाया है और इस लक्ष्य की पूर्ति हेतु नित्य एवं नियमित शाखा व्यवस्था को अपनी कार्य पद्धति के रूप में स्थापित किया है।
डॉ. हेडगेवार के विचारों का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वे समझते थे कि राष्ट्र तभी सशक्त होगा जब प्रत्येक नागरिक में राष्ट्रीय दायित्व का बोध विकसित हो। उनका अभिनव दृष्टिकोण था – “जैसा है, वैसा लेना है। जैसा चाहिए, वैसा बनाना है।”
डॉ. हेडगेवार की कार्यप्रणाली को समझाते हुए प्रधानमंत्री ने कुम्हार के उदाहरण का प्रयोग किया, जो सामान्य मिट्टी को आकार देकर महत्वपूर्ण निर्माण सामग्री में परिवर्तित करता है। इसी प्रकार, डॉ. हेडगेवार सामान्य व्यक्तियों को चुनकर उन्हें प्रशिक्षित करते और राष्ट्र के लिए समर्पित स्वयंसेवक के रूप में तैयार करते थे।
प्रधानमंत्री ने संघ की विशेषता बताते हुए कहा कि यह संगठन सामान्य लोगों को एकत्रित कर असाधारण कार्य करने में सक्षम बनाता है। उन्होंने शाखाओं को “व्यक्ति निर्माण की यज्ञ वेदी” कहा, जहां स्वयंसेवकों का शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास होता है। शाखा के माध्यम से स्वयंसेवक ‘अहम्’ से ‘वयम्’ की यात्रा प्रारंभ करते हैं।
समापन में, प्रधानमंत्री मोदी ने संघ की सफलता के तीन मूल आधारों का उल्लेख किया – राष्ट्र निर्माण का महान उद्देश्य, व्यक्ति निर्माण का स्पष्ट पथ और शाखा के रूप में एक सरल एवं जीवंत कार्यप्रणाली। उन्होंने कहा कि इन्हीं आधारों पर संघ के 100 वर्षों की यात्रा सफलतापूर्वक संपन्न हुई है और इसने स्वयंसेवकों में त्याग, समर्पण और सामूहिक कार्य के संस्कार विकसित किए हैं।