हाल ही में, श्री कृष्ण जन्मभूमि केस के संदर्भ में मुस्लिम पक्ष ने उच्च न्यायालय में एक महत्वपूर्ण आवेदन पेश किया है। इस आवेदन के माध्यम से, मुस्लिम पक्ष के वकील नासिरुज्जमा ने मांग की है कि उच्च न्यायालय द्वारा 23 अक्टूबर को दिए गए आदेश को अंग्रेजी भाषा में जारी किया जाए। इसके साथ ही, उन्होंने यह भी प्रार्थना की है कि न्यायालय निर्देश दे कि न्यायालय की रजिस्ट्री किसी भी प्रकार के आदेश को हिन्दी में अपलोड न करे। इस आवेदन में यह उल्लेख किया गया है कि जब तक आदेश का आधिकारिक अंग्रेजी अनुवाद उपलब्ध नहीं हो जाता, तब तक हिन्दी में आदेश की प्रमाणित प्रतियों को भी नहीं दिया जाना चाहिए।
नासिरुज्जमा ने तर्क किया है कि 23 अक्टूबर का हिन्दी आदेश अधिकृत अंग्रेजी अनुवाद के साथ अपलोड किया जाना चाहिए था। उनका यह भी कहना है कि हिन्दी में आदेश का अपलोड न करना, राजभाषा अधिनियम 1963 के अंतर्गत नियमों का उल्लंघन है, और इस प्रकार की चूके आदेश की वैधता पर प्रश्न चिह्न लगाती हैं।
इस बीच, श्री कृष्ण जन्मभूमि के अन्य पक्षकार और श्री कृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास के अध्यक्ष महेंद्र प्रताप सिंह ने मुस्लिम पक्ष की मांग को गलत और निराधार बताया है। उन्होंने कहा कि हिन्दी में जारी किए गए आदेश पूरी तरह से वैध हैं और मुस्लिम पक्ष केवल मुद्दे को लम्बित रखने के लिए ऐसे आवेदनों का सहारा ले रहा है। महेंद्र प्रताप सिंह का यह भी कहना है कि जब पिछले रिकॉल आवेदन को खारिज किया गया था, तो मुस्लिम पक्ष ने यह नया आवेदन दाखिल किया है, जिसे भी खारिज किया जाना चाहिए। इस प्रकार, उन्होंने मुस्लिम पक्ष की रणनीति को न्यायिक प्रक्रिया को बाधित करने का प्रयास करार दिया।
श्री कृष्ण जन्मभूमि मुक्ति निर्माण ट्रस्ट के अध्यक्ष और एक अन्य पक्षकार आशुतोष पांडेय ने भी इस मामले में अपनी राय व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि अदालत को मुकदमे के वाद बिन्दु निर्धारित करने चाहिए। इसके अलावा, उन्होंने यह संकेत दिया कि मुस्लिम पक्ष इस प्रक्रिया को आगे बढ़ने से रोकने के उद्देश्य से अनावश्यक आवेदन दाखिल कर रहा है। इस प्रकार, यह स्पष्ट होता है कि इस मुद्दे पर विभिन्न पक्षों के बीच एक गंभीर विवाद है, जो न सिर्फ कानूनी दृष्टिकोण से बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।