सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि वह प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट की सुनवाई के समय तक मंदिर-मस्जिद से संबंधित किसी भी नए मामले को स्वीकार नहीं करेगा। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अगुवाई वाली बेंच ने केंद्र सरकार से चार हफ्तों के भीतर उत्तर देने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह कहा कि जब तक सरकार का उत्तर नहीं आ जाता, तब तक इस मामले में सुनवाई संभव नहीं है। इसके साथ ही अदालत ने यह भी सुनिश्चित किया है कि नए याचिकाओं को स्वीकार नहीं किया जाएगा।
इस मामले में राजनीतिक दल जैसे सीपीआईएम, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, एनसीपी शरद पवार गुट के विधायक जीतेंद्र आव्हाड, आरजेडी के सांसद मनोज कुमार झा, और अन्य ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के समर्थन में हस्तक्षेप याचिकाएं दायर की हैं। वहीं, कुछ पैनल के सदस्य, जैसे ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन कमेटी और मथुरा के शाही ईदगाह मस्जिद प्रबंधन कमेटी भी इस मामले में आगे आए हैं। इससे पहले 9 सितंबर, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था।
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाओं का कहना है कि यह कानून ऐतिहासिक मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर अवैध कब्जा करके वहां पूजा करने की अनुमति देता है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह एक्ट हिंदू, सिख, जैन, और बौद्ध समुदायों को अपने अधिकारों से वंचित कर रहा है, और इसकी धारा 2, 3 और 4 संविधान के कई अनुच्छेदों का उल्लंघन करती हैं, जिससे धर्मनिरपेक्षता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।











